Sunday, November 30, 2008

सवाल दस रुपये का

हिंदू होने के फायदे - ९

राम की पैडी पर जब हम लोग समोसे खा रहे थे, तब मुझे याद आया की अम्मा ने तो सिर्फ़ दस रुपये ही दिए हैं। वो सारे तो वही ख़त्म हो गए। अब क्या करें। बड़ी मुसीबत। आगे आने वाले रास्ते पर एक अजीब तरह का ताना बिकता था। बेचने वालों का कहना था कि उसे भगवान् राम ने अपने वनवास के टाइम पर खाया था, और अक्सर खाते रहते थे। बहरहाल मुझे वो खाना अच्छा लगता था। उसका अजीब सा कसैला और मीठा स्वाद मुझे अभी तक याद है। यही सोच ही रहा था कि पतारू के बड़े भाई प्रेम परकास नजर आए। प्रेम ने बताया कि अम्मा बाबू और चचेरे मामा की चोटी बेटी अभी अभी आगे गए हैं। बड़ी हद चोटी छावनी तक पहुचे होंगे फ़िर क्या था। मैंने और पतारू ने वही से दौड़ लगनी शुरू की। परिक्रमा मे दौड़ लगानी काफ़ी मुश्किल होती है। हजरून लोगों की एक ही तरफ़ चलती भीड़ मे हमें दौड़ना था। और इतनी तेज़ कि आने वाले दस पन्द्रह मिनट मे अम्मा को पकड़ लिया जाय नही तो वो मिलने वाली ही नही थीं। आख़िर दस रुपये का सवाल जो था। ये तो पहले से ही पता था कि अम्मा वो लाल वाला गन्ना तो खरीदेंगी ही। सो लाल वाले गन्ने की चिंता नही थी। मैंने और पतारू ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और दौड़ना शुरू कर दिया। आख़िर मे चोटी छावनी के पास जहा मन्दिर के लिए पत्थर काटे जा रहे थे, वहां पर हमें आमा और बाबू दिख गए। चैन मिला। लम्बी साँस ली और पहुचे अम्मा के पास। खैर अम्मा ने डपटा नही और चुपचाप दस रुपये दे दिए। मैं भी सोच रहा था कि अभी कितनी चिरोरी करनी पड़ेगी।

जारी ....

देर से आने वालों के लिए पूरी कहानी यहाँ पढ़ें .... हिंदू होने के फायदे

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