Friday, July 31, 2009

और पीछे जाता समय

अयोध्या से लौटते हुए ऐसा नही लगा की पीछे कुछ छोड़े जा रहा हूँ। यही लगा की पीछा छूटा। दरअसल लगातार हिंदुत्व की राजनीती का शिकार बनी अयोध्या का अब कोई नामलेवा नही रह गया है। हर तरफ़ एक भयाक्रांत अव्यवस्था का ही बोलबाला दिखा। एक भय हमेशा संगीनों के साए मे रहने का, एक अव्यवस्था जो सरकारों से लेकर प्रशासनिक अधिकारीयों की बदौलत फैली रहती है। बाकी जो कुछ बचता है, वह लोगो की आदतें पूरी कर देती हैं। विकास के नाम पर एक ईंट भी नही लगी दिखाई दी, अलबत्ता ये जरूर सुनने को मिला की अगर किसी ने यहाँ का विकास करना चाहा तो जानबूझकर उसे दरकिनार कर दिया गया।
ये तकरीबन नौ दस साल पहले की बात है। अयोध्या मे कोरिया से एक प्रतिनिधिमंडल आया। ये लोग कोरिया के करक वंश से थे और बताते थे की काफ़ी समय पहले अयोध्या के राजवंश की एक राजकुमारी समुद्र यात्रा करके कोरिया पहुची। वहा उसने राजा से शादी की और उस राजा से उसे आठ बच्चे हुए। उनमे से सात तो बौध भिक्षु बन गए और बाकि बचे एक बच्चे से आज कोरिया मे करक वंश के लोग मौजूद हैं। ये लोग अपने नाम के आगे या पीछे किम लगते हैं। बहरहाल, इन लोगो का कहना था की अयोध्या उनकी ननिहाल है और वह अपनी ननिहाल को सुंदर और विकसित देखना कहते हैं। इसके लिए इन्होने विकास का एक प्रस्ताव भी रखा। इस प्रस्ताव पर जब बात आगे बढ़ी तो सन २००० से २००२ के बीच मे उत्तर प्रदेश सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल कोरिया भी गया। इसमे तत्कालिन पर्यटन मंत्री कोकब भी शामिल थे। इसके बाद एक और प्रतिनिधिमंडल गया और दूसरे दौर के वार्ता शुरू हुई। दूसरे दौर की वार्ता मे तय हुआ की कोरियन प्रतिनिधिमंडल एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजे। प्रस्ताव भेजा गया। उस समय केन्द्र मे भाजपा की सरकार थी । माननीय कथित लौह पुरूष अडवाणी गृहमंत्री हुआ करते थे। अयोध्या के ही कुछ लोगो ने बताया की उन्होंने कोरियन प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या मे विकास कराने की अनुमति नही दी।
ये तो हुई वक्त की बात। अब थोड़ा सा वक्त के और पीछे चलते हैं। श्री लंकाई और वर्मा के कुछ ग्रंथो मे मिलता है की भगवन बुध साल मे कुछ समय अयोध्या मे काटा करते थे। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिला जब जन्म भूमि की खुदाई के दौरान बुध कालीन भांड और अन्य बर्तन, मूर्तियाँ मिलने लगी। हिंदुत्व की सारी राजनीति इसमे मिलकर गायब होने जा रही थी। ऊपर से अगर केन्द्र की भाजपा सरकार कोरियन प्रतिनिधिमंडल का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती तो इस बात पर पक्की मुहर लग जाती की अयोध्या का इतिहास न तो हिन्दुओं से सम्बंधित है और न ही मुस्लिम समुदाय से। हिंदू मुस्लिम की राजनीति चलती रहे, उसका लौह पुरूष ने लोहा लाट तरीका निकला। अयोध्या को विकास की दौड़ मे पीछे कर देने का। तभी अयोध्या से लौटते वक्त कुछ ऐसा नही लग रहा की कुछ पीछे छोड़ आए।

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