Tuesday, August 4, 2009

माफ़ी के साथ....

माफ़ी के साथ मैं ये बताना चाहता हूँ की १२ पत्थर के नाम से जो ब्लॉग शुरू हुआ था, उसमे मेरे नाम की जगह किसी दूसरे शख्स का नाम हैएक ऐसा शख्स, जिसे पढने लिखने से कोई मतलब नही, और ये बात मैंने पिछले साल मे अच्छी तरह से जान ली हैइसलिए, अब वो ब्लॉग मेरा है, और उसमे लिखी सारी चीजें मेरी हैं। ye सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैंने ही वो सारी चीजें लिखी थी.... इसके साथ ही उस शख्स से भी माफ़ी, की मैं अब मेरा ही बनाया और लिखा हुआ ब्लॉग उससे वापस ले रहा हूँ....पेश है उस ब्लॉग की पहली पोस्ट जो मुझे काफ़ी पसंद है....

एक मुहल्ले का मिलन स्थल , सभी उमरों की पसंदीदा जगह , चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा और बीच मे एक ख़ूब बड़ा सा मैदान । जिसके अगल बगल होमिओपैथी, एलोपैथी ,तरह तरह के नर्सिंग होम और डॉक्टरी के ढेर सारे खंभे पाए जाते हैं और उनसे निकलने वाला करंट सारे शहर मे मुसलसल दौड़ता रहता है ॥दौड़ता रहता है ..हमने सोचा कि क्यों ना इस दौड़ को एक मुकाम दिया जाए जो सीधे उस जगह से शुरू हो जहाँ पर हमने दौड़ना सीखा था . बस यही सोच कर हमने उस मुकाम को नाम दिया बारह पत्थर . यही वो जगह है जहा मुहल्ले का हर बड़ा आदमी जो अब काफ़ी बड़ा हो गया है , कभी बगलों से फटी शर्ट पहन के फ़ुटबॉल खेलने मे कोई शर्म महसूस नही करता था लेकिन पता नही क्यों अब करता है .. ख़ैर ये ब्लॉग नामा इस बात को कुरेदने की क़तई कोशिश नही कर रहा है कि अब वो लोग वहा नज़र क्यों नही आते .. ये तो बस एक याद को संभालने के लिए है जिसे हम सब भूल नही सकते , क्योंकि नगर पालिका की चहारदीवारी से घिरा वो इमली का पेड़ अभी भी है. लेकिन वहाँ जो नही है , वो है वहाँ का मैदान , जिस पर अब मिलेट्री वालों ने क़ब्ज़ा कर लिया है और पूरी तरह से उस मोहल्ले के ही नही बल्कि आस पास के तीन चार ज़िलों के लोग अब उस मैदान से मरहूँ हो गये हैं और इसकी छाया अक्सर पुराने लोगों के चेहरे पर देखी जा सकती है , अब मुहल्ले के बच्चे अपनी अपनी छतों पे खेलते हैं या शायद फिर आर्यकन्या वाले मैदान मे , डंपू तो अपने मैदान मे किसी को खेलने ही नही देता बहुत बदमाश था और अभी भी है .. पता नही उसकी लड़की "शांति" के क्या हाल हैं . जबसे मैदान बंद हुआ तबसे सब लोग मुहल्ले मे ही सिमट गाये हैं . सेंट्रल स्कूल भी कहीं और चला गया है , वही स्कूल जहाँ से गली मे पहली बार गमले चुरा कर लाए गये थे और गली मे एक नये फ़ैशन की शुरुवात हुई थी ... ये बारह पत्थर कभी छूट सकता है क्या ?


इस मैदान मे मैंने अपना पूरा बचपन गुजरा है....बल्कि जवानी मे दाढी का पहला बाल भी यहीं से निकलना याद आता है....इस १२ पत्थर का कोई मोल है क्या ?

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