Saturday, October 17, 2015

आएगी बहार इसी बार... करता हूं इंतजार

ये जो चल रहा है, सोचता हूं उसके चलने के लि‍ए सबसे जरूरी क्‍या होता होगा... सुबह उठे तो पैरों को एक अदद चप्‍पल मि‍ल जाए, फ्रि‍ज में एक बोतल ठंडे पानी से दो घूंट मि‍ल जाए, मंजन करना हो तो ब्रश मि‍ल जाए, रसोई में प्‍याज न सही लेकि‍न आलू शि‍मला मिर्च टमाटर या मीनू का मीट काटने के लि‍ए एक अदद चाकू मि‍ल जाए, खाना बन जाए तो उसे पैक करने के लि‍ए टि‍फि‍न मि‍ल जाए, बाहर जा रहे हों तो बाल काढ़ने को एक कंघी मि‍ल जाए..
आम आदमी के जीवन में अंबानी बनना कोई इच्‍छा है तो उसे भी पता है कि उसका कोई मतलब नहीं है। वो तो बस जैसे तैसे काट देना चाहता है, ऐसे वैसे ही सही लेकि‍न जो चल रहा है, उसे गुजार देना चाहता है। क्‍या चाहि‍ए आखि‍र एक इंसान को चलने के लि‍ए.. चप्‍पल ही तो चाहि‍ए पैरों में। वो भी न हो तो..

चप्‍पल, जब तुम नहीं होती तो मैं जूता पहनकर टॉयलेट जाता हूं, जूता भीग न जाए इसलि‍ए उसे बाथरूम के बाहर उतार देता हूं। खाली डोरमैट पड़ा देख क्‍या बताऊं कि कैसी कैसी तुम्‍हारी याद आती है। तुम थी तो टॉयलेट भी टॉयलेट सा नजर आता था। तुम नहीं हो तो वो भी रेसिंग कोर्स सा लगता है और समझ में नहीं आता कि कर रहा हूं या भाग रहा हूं। बाथरूम में जब तुम भीगती थी, तुम्‍हें अपने भीगे पैरों में डाल कि‍तनी देर तक तो दि‍माग को ठंडा करता रहता था.. चप्‍पल, मेरी प्‍यारी चप्‍पल। जहां भी हो, मेरा प्‍यार हमेशा तुम्‍हारे साथ है।

चाकू... मेरे चमकीले सजीले कंटीले रपटीले तेज चाकू... तुम्‍हारे बि‍ना तो ये रसोई अब रसोई नहीं बल्‍कि सोई हुई है। काटने को कि‍तना कुछ तो है। डोंगी में पड़े मोटे मोटे आलू, उसके ठीक बगल चुन चुन कर लाए गए मोटे सफेद लहसुन। फ्रि‍ज में रखा लाल रसीला टमाटर, शि‍मला मिर्च और बड़े मन से लाई सीजन की पहली गोभी। पता है चाकू, अभी तक वो गोभी वैसे ही पड़ी हुई है। तुम हो नहीं तो वो भी होने नहीं पा रही है.. कि‍तना कुछ तो काटने को पड़ा है लेकि‍न जो नहीं पड़ा है वो तुम हो... तुम ही तो हो।

कंघी.. ओह मेरे बालों से लड़ने को बेताब मेरी पसंदीदा जंगी। मुझ बेकार को कार का लुक देने वाली कंघी। तुम मेरे जीवन और जोबन से कहां चली गई। तुम्‍हें खोजता हूं बार बार, मेज पर फैले बेतरतीब पड़े कागजों डि‍ब्‍बों दवाइयों चूरनों पि‍चकी हुई टूथपेस्‍ट की ट्यूबों, रजनीगंधा के खत्‍म डि‍ब्‍बों के बीच लेकि‍न तुम भी न जाने कहां मुझे छोड़कर चली गई। तुम्‍हारे बारे में मैं थोड़ा सो बेईमान हूं इसलि‍ए तुमको न जाने कहां बोल रहा हूं नहीं तो मुझे पता है कि तुम कि‍स जुल्‍मी के बालों संग खेल रही हो। जल्‍दी आओ नहीं तो तब तक मैं पाजामा तो बना ही हुआ हूं।

और टि‍फि‍न.. याद है तुम्‍हें हर दोपहर तुम कैसे खुलखुल कर खुलते थे मेरे सामने। अब कब खुलोगे.. खुलोगे या नहीं।

आएगी बहार इसी बार... करता हूं इंतजार कि मुझे भी मि‍ले एक चप्‍पल एक चक्‍कू और कंघी टि‍फि‍न..

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