Wednesday, December 30, 2015

फेसबुक के फ्रॉड- 2

आखि‍र क्‍या बात है जो मेनस्‍ट्रीम मीडि‍या फेसबुक के इस कदम का खुलकर वि‍रोध नहीं कर पा रहा है। जो मेरी समझ में आ रहा है, उसमें दो बातें हैं। एक तो मेनस्‍ट्रीम मीडि‍या की समझदानी इंटरनेट को लेकर अभी बहुत ही कमजोर है। दसूरी ये कि मीडि‍या मालि‍क पहले भी चुपचाप दलाली कि‍या करते थे और इस बार भी इस बड़ी दलाली में हि‍स्‍सा पाने का ख्‍़वाब देख रहे हैं। वैसे चिंता की कोई बात नहीं है, फेसबुक ज्‍यादा बड़ा वाला है, वो खुद से जुड़ रहे मीडि‍यावालों को कोई इनकम नहीं देने वाला।

पहले ये जान लें कि देश से कौन कौन फेसबुक के इस धोखे के साथ जुड़ चुका है। फेसबुक के मुताबि‍क बीबीसी, इंडि‍या टुडे, नेटवर्क 18, एक्‍यूवेदर, बिंग सहि‍त सौ से अधि‍क मीडि‍या हाउस इससे उस लालच में जुड़े हैं जो उन्‍हें पक्‍का लंबलेट करने वाला है। फ्री बेसि‍क्‍स के नाम पर जो पाइपलाइन बनेगी, उसमें इन सब मीडि‍या हाउसों को अपना कंटेंट डालने की सुवि‍धा दी जाएगी। अभी जि‍स तरह से फेसबुक कि‍सी भी चीज को प्रमोट करने के लि‍ए पैसे ले रहा है, वो वहां भी बदस्‍तूर जारी रहेगा। कंटेंट के साथ हर मीडि‍या हाउस अपनी साइट का लिंक डालेगा क्‍योंकि यूजर को साइट पर आमंत्रि‍त करना ही सोशल मीडि‍या का मूल व्‍यवसायि‍क उद्देश्‍य है, लेकि‍न यूजर फ्री के चक्‍कर में उसपर क्‍लि‍क ही नहीं करने वाला। (अभी भी नहीं करता है) यूजर अगर उस लि‍ंक्‍स पर क्‍लि‍क करेगा तो उसे उस साइट पर जाने के लि‍ए डाटा डाउनलोडिंग के पैसे देने होंगे। उसपर जो वि‍ज्ञापन चलेंगे, उसका होलसोल राइट फेसबुक और रि‍लायंस के पास ही है, एफबी ये पहले ही स्‍पष्‍ट कर चुका है।

अब जरा देखते हैं कि फ्री के नाम पर क्‍या फ्री नहीं हुआ। गूगल, यूट्यूब( अमेजॉन, फ्लि‍पकार्ट, याहू, लिंक्‍डइन, ट्वि‍टर, एचडीएफसी, आइसीआइसीआइ, पेटीएम, ईबे, आइआरसीटीसी, रेडिफ, स्‍नैपडील, एनएसई, बीएसई जैसी सैकड़ों चीजें हैं जि‍न्‍हें इंटरनेट यूज करने वालाा आम यूज रोजाना यूज करता है, ये फ्री नहीं होने वाली। इतना ही नहीं, सरकार की कोई भी साइट फि‍र चाहे वो चकबंदी की हो या जनसंख्‍या की या वाहन चोरी कराने की ऑनलाइन रि‍पोर्ट कराने की, इस जैसी सैकड़ों सुवि‍धाएं भी फ्री नहीं होने वाली हैं।


(जारी...) 

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