Thursday, December 24, 2015

कहानी उस ताखे पर है, जि‍सको घुटना कहते हैं

मेरे लड़कपन का प्रेम मेरी काजोल न होती तो क्‍या होता।
 कहानी मत देखि‍ए, काजोल को देखि‍ए। 
गुलाबी गाड़ी, पीली साड़ी, सूनसान सड़क, बरसात बेधड़क, पलटती लड़की, दि‍ल की खि‍ड़की, धूम धूम धांय धांय, मि‍लना बि‍छड़ना, फि‍र से बि‍गड़ना, बि‍गड़ के मि‍लना... क्‍या नहीं है इस फि‍ल्‍म में। उड़ती रॉल्‍स रॉयस और जुल्‍फों ने फि‍ल्‍म को ऐसा उड़ाया है कि अभी तक उड़ ही रही है, जमीन पर नहीं आई है। शर्म तो नहीं आ रही होगी शेट्टी भाई, थोड़ी बेशर्मी हम सबको भी देते जाओ, तीन सिटिंग में पूरी फि‍ल्‍म देख लेंगे। इतने तो दि‍लवाले हम भी हैं।

काली, राज, किंग, फूल, पत्‍ती, धूल, कार, सवार, प्‍यार, जीत-हार से लेकर संजय मि‍श्रा तक बोर हैं, जॉनी भाई भी चुके हुए लोगों के साथ कितना कर लेंगे। एक धागे में दस सुई डाल के सि‍लाई नहीं होती लेकि‍न पैसे हों तो दि‍लवाले जैसी होती है। अपने अफ्रीका वाले जेमी भाई तो जीवित हैं नहीं, कम से कम उनकी बनाई फि‍ल्‍में देखकर ही सीख लेते मेरे शरम शेट्टी।

नहले पे दहला, सगा सौतेला, सेट अलबेला सब डाल दि‍या और कहानी निकालकर उस ताखे पर रख दी जो घुटने में होती है। मेरे लड़कपन का प्रेम मेरी काजोल न होती तो क्‍या होता। कहानी मत देखि‍ए, काजोल को देखि‍ए। संतोष करि‍ए, असंतोष नहीं। इसे भी फि‍ल्‍म कहते हैं। बस।

इसे ही कभी घुसी कभी कम कहते हैं।

No comments: