Sunday, September 11, 2016

मिलेगा तो देखेंगे- 18

मेरा हाथ वो अपने बड़े से हाथों में लेकर कहती या शायद बुदबुदाती कि हम गांव जरूर चलेंगे। वहां नदी है, पहाड़ियां हैं, चट्टानें हैं, बकरियां हैं और ढेर सारे जंगली फूल भी। और फिर अम्मा तो वहीं है। क्या हुआ जो वो मुझे नहीं मानती? तुमको देखेगी तो मानने लगेगी। मैं हां हूं करके चुप बैठा रहता और अपने हाथ की साइज उसके हाथ से मिलाता रहता। उसकी हथेलियां मेरी हथेलियों से बड़ी थीं। मैं अपना पूरा पंजा भी फैला लेता तो भी बीस और अट्ठारह का फर्क रहता ही रहता। इस तरह से उसकी बड़बड़हाट से ऊबता मैं उसे उसकी ही हथेली दिखाने लगता या फिर उसका सबसे अप्रिय सवाल पूछता कि जब तुम्हारी अम्मा पाएंगी कि मैं तुमसे छोटा हूं तो? इस पर वो बड़ी देर तक चुप रहती। फिर कहती कि नहीं चलेंगे गांव। न अपने न तुम्हारे। और तुम्हारे गांव तो मैं कभी नहीं जाउंगी। यूपी के गांव भी भला कोई गांव होते हैं? सपाट धरती और तुम्हारी तरह उस वीराने से आए अकेले लोग। जो बचे रह गए वो दूसरों को कैसे बचकर नहीं रहने दिया जाए, इसी की जुगत में अपनी सुबहें और शाम खेत करते रहते हैं।

एक दिन मैंने उससे आखिरकार पूछ ही लिया कि उसके पास कितनी खेती है। उस दिन वो बड़े मन से मेरे लिए कढ़ी बनाकर लाई थी जो कहीं से भी नहीं कढ़ी थी। पता नहीं न कढ़ पाने की नाराजगी रही होगी या यूपी में पूछे जाने वाले सबसे आम सवाल की आम जिज्ञासा से उपजी टीस। बहरहाल, मुझे यही लगा कि खेतों में कहीं कुछ टूटा है। बोली कि उसके यहां ज्यादा खेती नहीं है। बल्कि जो भी खेत हैं वो यूंही पड़े रहते हैं, उनपर भी कोई काम नहीं हो पाया। मिलिट्री में मजदूर रहे उसके पिता ने अपनी रिटायरमेंट के बाद जितना धान तरोई उगाई, बस उतनी ही खेती वो देख पाई। अलबत्ता गांव के दूसरे लोगों को वो रोज स्कूल से जाते और आते हुए खेती करते देखती तो थी, लेकिन इस काम में उसकी कोई खास रुचि नहीं जम पाई। खेती उसे अच्छी नहीं लगती। मैंने फिर पूछा कि क्यों नहीं अच्छी लगती? वह फिर चुप हो गई।

उस दिन वो स्लीवलेस ब्लाउज और कत्थई बॉर्डर वाली हरी सूती धोती पहनकर आई थी। अपने आसपास मैं आमतौर पर इस तरह की महिलाओं को देखने का आदी नहीं हूं, लेकिन उसे देखकर न तो मुझे कोई ताज्जुब हुआ और न ही कोई हूक उठी। सबकुछ पूरी तरह से सामान्य था। मेरे कंधे तक पहुंचते बाल तेजी से गिर रहे थे। मैं उसकी कुर्सी के पास गया, नजदीक से ही एक कुर्सी खींची और अपने कंधे उसे दिखाने लगा कि देखो, कितनी तेजी से और कितने सारे बाल गिर रहे हैं। आखिर तुम कैसे इतने सालों से अपने बाल संभालती आई? मुझसे तो संभल ही नहीं रहे हैं। मैं इन्हें कटा दूंगा। वो धीमे से मुस्कुराई और अजीब तरीके से अपनी आंखों की गोलियां नचाते हुए अपने झोले में कुछ खोजने लगी। एक छोटा सा डिब्बा उसने निकाला जिसमें भुनी हुई अलसी थी। दो चुटकी अलसी उसने मुझे खाने को दी और मेरे बालों में उंगलियां फेरीं। बोली-रोज दो चुटकी अलसी खाया करो, बाल गिरना बंद हो जाएंगे। अलसी का बालों से इस तरह का संबंध मेरे लिए नया था लेकिन उसके लिए नहीं। उसके इलाके में महिलाएं अपने बालों को इसी तरह से बचाती आई हैं। 

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