Sunday, September 4, 2016

देश का पीएम किसके साथ है?

फोटो क्रेडिट- कैच न्यूज 
यह कुछ और नहीं बल्कि राष्ट्रवाद का व्यापारीकरण है। राष्ट्रवाद जैसी एक पवित्र और निर्मल चीज को अब घर में ही बेचा जा रहा है। यह देश में अलग-अलग रूपों में सामने आ रहा है। इसकी इंतहा तब हो गई जब देश के पीएम एक प्राइवेट कंपनी का ब्रांड अंबेसडर बनने के लिए तैयार हो गए। यह न केवल राष्ट्रवाद की भावना का अपमान था बल्कि देश के लोकतंत्र और उसकी 120 करोड़ जनता का भी, जिसने कि मोदी साहब को देश की अगुवाई के लिए चुना है। यह शासक और शासित के बीच समझौते का उल्लंघन है, जिसमें मोदी जी ने जनता के साथ विश्वासघात किया है। अमूमन तो उन्हें जिओ सिम के प्रचार के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी तरीके से जुड़ना ही नहीं चाहिए था और जुड़े भी तो देश की सबसे बदनाम कंपनियों में से एक रिलायंस के साथ। सार्वजनिक जीवन में जिसकी कंपनियों की साख हर क्षेत्र में गोता लगा रही है। जो अपनी पेट्रोगैस कंपनियों का घाटा देश के आम लोगों की जेब से निकालने की पुरजोर कोशिश कर रही है। जिसे भ्रष्टाचार, गमन, चोरी और धोखेबाजी के लिए ही जाना जाता है। वह जनता के साथ हो या कि सरकार के साथ। सरकारी कंपनी ओएनजीसी का 30 हजार करोड़ का रिलायंस द्वारा गबन की खबर आम है, लेकिन इस पर न कुछ सरकार बोल रही है और न ही मीडिया। मीडिया भी खैर क्यों बोलेगा? आखिर अंबानी जी ने उसे भी खरीद कर अपनी जेब में रखा ही हुआ है।

राष्ट्रवाद सर्फ अंबानी ही नही बेच रहे हैं, इसमें बाबा रामदेव से लेकर राजीव बजाज तक शामिल हैं। बाबा अपने उत्पादों को राष्ट्रवादी करार देते हैं और कहते हैं कि उनका सारा पैसा दान में जाता है। अब उनका कमाया मुनाफा कैसे दान की शक्ल ग्रहण कर लेता है और जनता को किस रूप में मिल रहा है, यह किसी की भी समझ से परे है। अलबत्ता सबसे ज्यादा कीमतों में सामानों की बिक्री और कंपनियों में सस्ती दर पर मजदूरी जनता की खुली लूट को जरूर दिखाता है। सबसे ऊपर बाबा का गुणगान। राष्ट्रवाद का इससे बड़ा नाजायज फायदा कुछ और नहीं हो सकता है। खुला सरकारी संरक्षण बाबा को हर जायज नाजायज करने की छूट देता है। इन मुनाफों से इतर बीजेपी शासित राज्यों में हजारों एकड़ जमीन का बाबा के नाम किया जाना किसी बंपर बोनस सरीखा है।

राष्ट्रवाद की खेती अकेले बाबा नहीं कर रहे हैं। तिरंगे को बेचने वालों की कतार में दूसरे भी हैं। एक और नाम राजीव बजाज का है। उन्होंने एक बाइक निकाली है। इसमें दावा किया गया है कि उसके ढांचे के निर्माण में देश के पहले पानी के लड़ाकू जहाज विक्रांत के इस्पात का इस्तेमाल किया गया है। खबर यह भी है कि आमिर खान ने इसी बिना पर उसकी एक बाइक खरीद भी ली है। अब आम और उसकी गुठली का दाम वसूलना कोई बजाज से सीखे। इसी तरह से तिरंगा बेचने वालों में कैशलेस की सुविधा देने वाली पे-टियम और ट्रैवल कंपनी ओला भी है। सब अपने-अपने मुनाफे के लिए राष्ट्रवाद का इस्तेमाल कर रही हैं।

दरअसल राष्ट्रवाद के इस फर्जी खेल की शुरुआत बीजेपी-संघ ने की है। उसने राष्ट्रवाद के नाम पर अल्पसंख्यकों और दूसरे तबकों का उत्पीड़न शुरू किया और देश भर में तिरंगा यात्रा (या तिरंगे की शवयात्रा?) निकालकर अब इसे एक नये परवान पर ले जाना चाहती है। जबकि सच्चाई यह है कि तिरंगे और आज़ादी की लड़ाई से इनका दूर-दूर तक रिश्ता नहीं है। आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब हमारे पुरखे इस तिरंगे को हाथ में लेकर कुर्बानियां दे रहे थे, तब सावरकर से लेकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी तक इनके नेता अंग्रेजों की गोद में बैठे हुए थे। सावरकर का अपनी रिहाई के बदले अंग्रेजों से 6 बार माफ़ी और उनके हर निर्देशों का पालन करने की शर्त इसका उदाहरण है। मुखर्जी का 1942 के आंदोलन से किनारा कर मुस्लिम लीग के साथ बंगाल में सरकार का संचालन भी उसी का हिस्सा है। संघियों के पास एक भी शख्स ऐसा नहीं है, जिसे ये अपने लिए आज़ादी की लड़ाई का हिस्सेदार बता सकें। जिस तिरंगे को गाली देते-देते इनकी उम्र बीत गई अब उसी को हाथ में पकड़कर ये राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद कर रहे हैं। इनके जैसा झूठा और फरेबी इतिहास में ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। इस पूरी कवायद का लक्ष्य राष्ट्रवाद की फर्जी सर्टिफिकेट हासिल करना है। जिसका इस्तेमाल अपना वोट पक्का करने और थैलीशाहों की जेब मोटी करने में कर सकें। इस काम को वो बखूबी अंजाम दे रहे हैं। अनायास नहीं है कि मजदूरों की हड़ताल के दिन अंबानी के विज्ञापन के साथ दिखकर मोदी जी ने बता दिया कि देश का पीएम किसके साथ है।
- महेंद्र मिश्र 

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